नन्ही लेखिका का एक छोटा सा लेख।
मेरा बचपना बहुत अच्छा था। वो बचपन वाले दिन कितने अनमोल और मस्ती से भरे थे। कितनी मस्तियाँ करते थे हम। खेलना कूदना उछलना, कितना कुछ, मम्मी पापा के साथ घूमने जाना, बहुत मस्ती से गुजरते थे। जब हम छोटे थे तो मम्मी-पापा हमारी हर इच्छा पूरी करते थे। हम रोते थे तो हमें मनाने के लिए कुछ भी करते थे। हम थोड़ी देर दिखते नहीं थे तो बहुत परेशान हो जाते थे। कितना प्यार मिला था हमें मम्मी-पापा से और दादा दादी के तो हम बहुत लाड़ले हुआ करते थे।
जब हम बड़े हो जाते हैं तो हमारे बचपन के दिन कैसे गुजर जाते हैं पता ही नहीं चलता। बड़े हो करके मम्मी-पापा की डाँट खानी पड़ती है। बड़े होते हम विगड़ते चले जाते हैं। हम सोचते हैं काश ये बचपन वाले दिन हमेशा होते।
कितना मज़ा आता है उन दिनों में, और यह गुजर जाता है तो बहुत बुरा लगता है। हम बचपन में मस्तियाँ करते हैं, गलतियां नहीं। वो दिन कितने कोमल थे, कठोर तो बिलकुल भी नहीं, ना जाने वो दिन क्यों चले गए। जब हम बड़े होते हैं तो बिगड़ते जाते हैं पर हमें सुधारना चाहिए।
जब हम छोटे थे तो मम्मी-पापा हमारी हर इच्छा पूरी करते थे। अब हम बड़े हो गए तो हमें भी मम्मी पापा की आज्ञा का पालन करना चाहिये।
मम्मी का कहा हम सुनते नहीं, हमें लगता है कि हम बड़े हो गए। लेकिन माता-पिता के लिए बच्चे हमेशा बच्चे ही रहते हैं चाहे हम कितने ही बड़े क्यों न हो जाएँ क्योंकि माता पिता के चरणों में ही स्वर्ग है। हमें माता-पिता की बात माननी चाहिए
-पायल कक्षा आठवी, सफायर पब्लिक स्कूल बादलपार।